तुमको ही जग में सबसे अच्छा लिख दूँ
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सोच रहा हूँ गुरु तुम्हें सच्चा लिख दूँ।
तुमको ही जग में सबसे अच्छा लिख दूँ।
तुमको आशा लिखूँ निराशा तुम्हें लिखूँ,
तुम्हें राम लिख दूँ तुमको सीता लिख दूँ।
पागलपना नहीं समझों तो आज यहीं,
तुम्हें लिखूँ काँधा तुमको राधा लिख दूँ।
कभी लिखूँ तुमको चम्पा, बेला, जूही,
कभी चांदनी लिखूँ कभी चन्दा लिख दूँ।
मन करता है तुमको ही इस धरती का,
सोना, चाँदी, पन्ना या हीरा लिख दूँ।
आँखे कहतीं तुमको लैला हीर लिखूँ,
दिल कहता तुमको मजनू रांझा लिख दूँ ।
इच्छा है कि तुम्हें गज़ल या गीत बता,
इश्क मोहब्बत की पावन धारा लिख दूँ।
दुनियां चाह रही है कल के लिए अभी,
सन्दर्भों, भावों की परिभाषा लिख दूँ।
हाथ पसारे रोज निकलता हूँ तुमसा,
यार मिले तो यारी की गाथा लिख दूँ।
– धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव संरक्षक मानव सेवा समिति सिखारी गाज़ीपुर